सोमवार, नवंबर 03, 2014

बड़े दिल वाले छोटे खां

अंग्रेजी में एक कहावत है - Truth is stranger than fiction - अर्थात सत्य कल्पना से भी ज्यादा विचित्र होता है। हम कई बार कहानियाँ पढ़ते हैं, फिल्में देखते हैं, दोस्तों से गपबाजी के किस्से सुनते हैं - अमुक किरदार ने ये किया, फलाने के साथ वो हुआ मगर फिर सोचते हैं यह सब तो सिर्फ कहानियों और किस्सों में , फ़िल्मी किरदारों के साथ ही होता है।

मैं एक बार पहले भी इस बारे में लिख चुका हूँ। यह दुनिया बड़ी अनोखी है - यहाँ क्या कुछ हो सकता है - इंसान क्या कुछ कर सकता है इस बात की कोई सीमा नहीं है। पिछले साल मैंने तीन भागों में एक छोटी सी कहानी लिखी थी - हज़ किश्त । इस कहानी के मुख्य क़िरदार फ़ारुख़ सईद ने ताउम्र जमा किये गए हज के पैसे किसी दूसरे आदमी के इलाज के लिए दे दिए थे।

अभी कुछ दिन पहले एक समाचार देखा राजस्थान के कोटा में एक रिक्शा चलाने वाले छोटे खां ने हाड़ तोड़ मेहनत कर १२ साल में १ लाख रूपये जुटाए थे - यह सब पैसे उन्होंने बच्चों के हॉस्टल बनाने के लिए दान कर दिए। छोटे खां के अनुसार:

"मैंने सुना था कि बच्चों को शिक्षा देना ख़ुदा की इबादत से कम नहीं होता। हम हज करने लायक तो नहीं बचे, हॉस्टल का एक बच्चा भी क़ुरान पढ़ना सीख गया तो मैं समझूंगा कि मुझे हज का सबब मिल गया। "




छोटे खां साहब - आपके ज़ज्बे को सलाम !

चित्र साभार : दैनिक भास्कर

शनिवार, सितंबर 20, 2014

चन्दूमल और उनका ठेला


सड़े आम हैं, पका है केला,
कच्चे सेब का लगा है मेला।
फीकी नाशपाती, खट्टेअंगूर,
खाए न इन्हे कोई लंगूर।।

ठेले पर सब रखकर फल,
चले बाजार को चन्दूमल।
फटी है टोपी, बिखरे बाल,
चन्दूमल, पूरे कंगाल।।

मैली कमीज, पीली बनियान,
चप्पलों में हो रही तानातान।
टेढ़े दांत और तिरछी चाल,
गर्मी से हैं हाल बेहाल।।

गलियों में लग रही हैं हाँक,
सब जन करते झांकाझांक।
रोक रोक कर भाव जो पूछें,
चन्दूमल तो अकड़ें मूछें।।

दिन दिन भर गलियों में घूमें,
साँझ भई तो घर पर झूमें।
रोज निकलना, रोज ही आना,
जीवन का यह ताना बाना।।

एक समय था जीवन का वह, छूट गया कहीं लगता पीछे,
धुंधली सी बस याद बची है, खत्म हुआ जल अब कहूँ सींचें।
जीवन भरा था आशाओं से, चहुँ ओर था छाया मेला,
आज तो बस बचा है भैया, चन्दूमल और उनका ठेला।।