शनिवार, जून 20, 2009

साईकिल

उसने घर से साइकिल निकली और चल पड़ा। साइकिल के पूरे बदन पर धूल बिछी हुई थी। आजकल शहरों में कितनी धूल है, पता नही कहाँ से आ जाती है। विदेश में तो कहीं धूल नही होती? यहाँ वहां देखो धूल का एक कण भी नही दिखता और अपने ये शहर तो मानो धूल भरी तश्तरी है। जरा सी हवा चली नही कि चहुँ-ओर धूलमधूल। ये लोग पेड़ नही लगाते, घर पर घास का 'लॉन' उगाना प्रतिष्ठा का प्रतीक है, मगर मार्ग-विभाजक पर बिछी हुई घास का पद दमन करने में कोई हर्ज नही। देखा तो पहियों में हवा भी कुछ कम थी। पिछले दो हफ्तों से साइकिल जो न चलायी थी!

साइकिल का हेंडल पकड़ वह बाहर निकला। कल्लू पंक्चर की दुकान रस्ते में ही है - वहीँ हवा भरा लेगा। आगे जाकर एक शार्टकट मार सीधा हवा भरवाई। साइकिल पर कपड़ा मारा तो लगा कहीं से आहें और कहीं से दुआएं आई। स्टैंड पर टिकाकर पहियों को एक दो चक्कर घुमाये, गियर अपनी जगह पर स्थापित किए। आगे खाली सड़क थी - तो चल पड़ा।



शुरुआत में ही गति पकड़ ली, एक आध ऑटोरिक्शा को पीछे किया तो छाती फूल गई। कुछ ही देर में वह एक छुट्टन सी कार के बगल में था -दोनों साथ में - और अभी तो साइकिल पांचवे ही गियर में थी ! एक पल के लिए कार वाले को विश्वास न हुआ - झेंप कर उसने अपनी गति बढाई और धूल का गुबार उड़ाकर आगे निकल गया। मरा हाथी भी भैंस से ऊंचा होता है - भले ही छोटी हो, है तो कार ही !

फिजूल ही कार वाले के अहम् को ललकारा। ढेर सारी धूल फांक कार वह आगे बढ़ा - देखा तो चढाई थी। दो- तीन किलीमीटर तो हो ही गए होंगे - शुरू की गर्मी भी अब हवा हो चुकी थी। श्वसन गति भी बढ़ गई थी - तुंरत गियर डाउन किए, हाँफते हुए उस चढाई को पार किया।

कुछ देर बाद अब साँस सामान्य हो चुकी थी। उसे अपने अन्दर ऊर्जा का एक उमड़ता हुआ स्रोत महसूस हुआ। एक अनोखी खुशी और उन्माद की ऐसी अप्रतिम लहर - शायद इसी को 'Second Wind' कहते हैं।

रविवार, मई 31, 2009

दुनिया की सबसे कठिन भाषा?

मुझे नई भाषाएँ सीखने में रूचि है। कई सज्जनों ने पूछा, "क्यों?"। मन हुआ कि बडबडा दूँ "इन्टेलेक्चुअल क्युरिऔसिटी", मगर इन्टेलेक्चुअल को गटक गया और उगल दिया मात्र "क्युरिऔसिटी"। कई बार मन में प्रश्न उठता है कि "दुनिया की सबसे कठिन भाषा कौनसी है?"। वैसे यह प्रश्न यदि यूपी बोर्ड के छात्रों तो समक्ष रखा जाए तो सर्वसम्मत उत्तर मिलेगा - अंग्रेज़ी। यही देखकर उनके मन में अंग्रेजों के प्रति श्रद्धाभाव और बढ़ जाता है - वहां तो बच्चे भी अंग्रेज़ी बोल लेते हैं और यहाँ मैट्रिक पास होकर भी 'हेलो गुड मॉर्निंग और प्लीज़' से आगे नही बढ़ पाते!


वैसे यह प्रश्न भी बड़ा अजायब है, जिसका उत्तर इस बात पर निर्भर है कि उत्तर देने वाला कौन है! हिन्दीभाषी के लिए पंजाबी सीखना उसी तरह आसान है जैसे पुर्तगाली बोलने वाले के लिए स्पेनिश सीखना।अंग्रेज़ी में एक कहावत है "That's Greek to me" जिसका अपनी सीधी साधी खड़ी हिन्दी में अनुवाद है - "ये बात तो अपने पल्ले न पड़ी, सर के ऊपर से हो ली"गौरतलब बात यह है कि लगभग हर प्रमुख भाषा में इस कहावत का एक सदृश है। इन उदाहरणों पर एक नजर डालें तो कुछ दिलचस्प चीज़ें दिखाई देंगी। जैसे ब्रितानी लोगों के पल्ले ग्रीक, चीनी और डच भाषाएँ नही पड़ती तो फ्रांसीसियों के पल्ले हिब्रू और जावा। हमारी अपनी हिन्दी अरबों की समझ के बाहर है तो रो़म वासियों के लिए अरबी मंगल गृह पर बोली जाने वाली भाषा है। वैसे पंजाबी में भी कहते हैं " ਕੀ ਮੈਂ ਫਾਰਸੀ ਬੋਲ ਰਿਹੈਂ?" (क्या मैं फ़ारसी बोल रहा हूँ?)

अगर इन भाषाई मुहावरों को एक मानदंड मान कर यदि एक सर्वसम्मत निष्कर्ष निकला जाए तो वह यह होगा कि दुनिया की सबसे कठिन भाषा चीनी है। अब सीखने में सबसे मुश्किल भाषा बोलने वाले ये चीनी लोग किस भाषा को सबसे कठिन समझते हैं ? जंगल के राजा शेर को मात देने वाले को चुनौती देने का माद्दा किसमे है? चीनी भाषा के मुहावरों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि चिडियों की भाषा ही अगला पायदान है। धन्य हो चीनियों!