मंगलवार, नवंबर 20, 2007

हिन्दी का भविष्यचिन्तन !

एक दिन मैं अपने एक वरिष्ठ प्रोग्रामर सहकर्मी (जो अमरीका में है) से दूरभाष पे वार्तालाप कर रहा था। उनकी वरिष्ठता के कारण मैं थोड़ा संकोच में था। बात शुरू तो अंग्रेज़ी में हुई मगर हिन्दी तक पहुँचने में ज्यादा वक्त न लगा। और फ़िर एक बार जो बात शुरू हुई तो कुछ न कहें। ये मारा - वो मारा! कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जिन भी बूझ - अबूझ मुद्दों ने इस राष्ट्र को घेरा हुआ था - चर्चा कर डाली। सलमान - कटरीना के रोमांस से लेकर आने वाली फिल्मों की रिलीज तक, इराक से लेकर कोरियन संकट तक, सचिन की सेंचुरी से लेकर द्रविड़ को ड्राप किए जाने तक, नंदीग्राम की ज्यादतियों से लेकर गुजरात की बर्बरता तक - इस पल कुछ भी अछूता न था - अब कम्पनी के फ़ोन बिल की चिंता किसीको न थी !


अंग्रेजी में एक मुहावरा है - "Salt(ing) the mine" - Gold rush के दौरान कुछ लोग खानों में सोना और जवाहरात "कसवा" देते थे जिससे कि खानों को ऊँचे दामों में बेचा जा सके। कुछ ज्यादा कल्पनाशील लोग तो शौटगन में सोने की धूल भरकर खान के चारों ओर फिंकवा देते थे। काकेश जी ने सोफ्टवेयर क्षेत्र में अंग्रेज़ी के चलन की बात की - मुझे लगता है "We are just salting the mine"। चाहे अंग्रेज़ी में कितना ही चबड - चबड कर लें - आख़िर दिल है हिन्दुस्तानी! जब तक हम जैसे लोग हैं हिन्दी का भविष्य उज्जवल है।

सोमवार, नवंबर 19, 2007

मेरे सपनों की लड़की ...

"लड़का और लड़की बस स्टॉप पर मिलते हैं. उनकी नज़रों का सामना होता है और आँखों ही आँखों मैं प्यार हो जाता है. कुछ ही देर में वो मग्न होकर पेड़ों के इर्द गिर्द चक्कर काटते हुए प्रेमगीत गाने लगते हैं. पीछे पृष्ठभूमि में कुछ भड़कीले कपड़े पहने हुए युवक - युवतियां ताल में ताल मिलकर नृत्य करना शुरू कर देती हैं." - थोड़े से फेरबदल के बाद यह सीन किसी भी बॉलीवुड फीचर फ़िल्म का हो सकता है .

आज हम आए बाये जब कोई हिन्दी फ़िल्म देखते हैं तो यही विचार मन में आता है कि आज की फिल्में यथार्थ से एकदम परे हो चली हैं. "उस मुई को देखो ,ऐसे कपड़े भी कोई पहनता है भला ?" , " इन साहब को देखिये जाने किस आसमान में सवार हैं, भला ऐसे भी कोई किसी से बात करता है ?" और भी कई उदाहरण दिए जा सकते हैं . कहने का अभिप्राय यह है कि हम सब अपनी समझ के हिसाब से परदे पर आने वाले हर पात्र का चीर फाड़ कर निष्कर्ष निकलते हैं कि "ये फ़िल्म वाले तो आजकल कुछ भी दिखाने लगे हैं !


मगर कहीं ऐसा तो नहीं कि हम उस रूमानियत की दुनिया को भूल चुके हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि अविश्वास का चश्मा नाक पर चढाये हम अति - यथार्थवादी हो चले हैं .ऐसी भूलें और बातें जो आज एक किरदार परदे पर कर रहा है कभी हमने भी की होंगी ! यदि ऐसा है तो इसमे बॉलीवुड के कथाकारों /निर्देशकों की गलती नहीं , वो तो बेचारे बस हमारे चश्मे पर चढी धूल की परत को साफ करने की कोशिश कर रहे हैं ! अगर उनकी कुछ गलती है तो सिर्फ़ ये कि वो अतिशयोक्ति के शिकार हो चले हैं.


अब यह पढिये....
एक जनाब की नज़रें न्यूयोर्क की भीड़-भाड़ वाली सबवे ट्रेन में एक बाला से टकरा गयीं - और फ़िर क्या था पहली नज़र में प्यार हो गया ! अब भीड़ इतनी कि वो लड़की उनकी आंखों से ओझल हो गई. बहुत ढूँढने पर भी जब इनको अपने ख्वाबों कि वो परी न मिली तो इन जनाब ने उसको ढूँढने के लिए एक वेबसाइट बना डाली! और देर सबेर इनको वो मिल भी गई - अब प्रेम कहानी का अंत क्या हुआ यह तो वही दोनों जाने मगर बात दिल को छू गई.

रविवार, नवंबर 18, 2007

दिल्ली की दारु और कोल्हापुर की मर्सीडीज़

बतंगड जी लिखते हैं कि पिछले वर्ष दिल्लीवाले ७८,००० बोतल शराब पी गए ( बोतल के आकार/क्षमता के बारे में उन्होने कुछ नहीं कहा )। साथ ही १६ लाख नयी कारें भी खरीदी गयीं। कुल मिलाकर दिल्लीवासियों की औसत कमाई सालाना ६१,६७६ हो गयी है जो गोवा के बाद देशभर में सबसे ऊपर है। उनकी भाषा में से समाजवाद की बू आती है। आख़िर इस सब में गलत क्या है - चिंता की बात तो तब होती जब लोग खाने के लिए चोरी करने लगें!


महाराष्ट्र में मुम्बई के बाद सबसे ज्यादा मर्सीडीज़ कहाँ पायी जाती हैं बताइए जरा ? ज्यादा सिर मत खुजाइये मैं बताता हूँ - कोल्हापुर। गन्ना,धातु - खनन और कपडा उद्योग से कमाई हुई दौलत के दम पर ये छोटा शहर आज भारत मैं औसत सालाना कमाई की सोपान पर काफी ऊपर है। अब पैसा है तो शौक भी -चाहे दारू पियें या मर्सीडीज़ खरीदें - किसी को फिक्र है क्या ? कम से कम कोल्हापुर वासियों को तो नहीं! आख़िर हम कब अपनी इस भौतिकतावाद विरोधी मानसिकता से बाहर निकलेंगे ?

भगवान् राम की जन्मतिथि

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भारत के जन मानस में सदियों से घर किये हुए हैं। इस कदर कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले "रामायण" के पात्रों को अभिनीत करने वाले कलाकारों को जन साधारण ने पूज्य माना है! इन्ही प्रभु राम की पिछले कुछ समय में सेतु समुद्रम मामले में काफी छीछलेदार हुई है। कुछ बडबोले नेताओ ने तो श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए थे! वैसे मुझ जैसे एग्नोस्त्त तो बाहर से तमाशा देख रहे थे और सोच रहे थे कि इंसान पहले तो खुद किसी को भगवान् बनाता है और फिर खुद ही उनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाता है!

सही कहा है वोल्टेयेर ने ,"If God did not exist, it would be necessary to invent him."

अब इन बातों का एक असर यह भी हुआ है कि कई लोग जो कि इस ओन्स्लौट से निष्प्राण रह गए थे वो फिर से सिर उठाने लगे हैं। इन जनाब का कहना है कि आने वाली १० जनवरी २००८ को श्री राम ७१२२ वर्ष के हो जायेंगे ! इन्होने यह तिथि आर्कियो-एस्त्रोनोमी ( पुरातत्व और खगोलविद्या के मेल से बनी एक नयी विधा) के बल पर प्राप्त कि है। इन्होने कुछ और महत्वपूर्ण तिथियाँ भी डिराइव की हैं जो मैं नीचे चिपका रह हूँ।

Sri Rama Navami - Birth day 10th January 5114 BCE
Birth of Bharatha 11th January 5114 BCE
Pre coronation eve 4th January 5089 BCE
Khar, Dushan episode 7th October 5077 BCE
Vali Vadham 3rd April 5076 BCE
Hanuman's Visit to Lanka 12th September 5076 BCE
Hanuman's Return from Lanka 14th September 5076 BCE
Army March to Lanka 12th September 5076 BCE

अब इस नविन विधा की प्रमाणिकता और वैज्ञानिक समुदाय में इनकी मान्यता क्या यह तो वही जाने, हमारा काम था बताना सो हमने किया ! वैसे आप देख ही सकते हैं कि ये तिथियाँ आपस में ही असंगत हैं!

शनिवार, नवंबर 17, 2007

बौब कट वाली महिला

जब मैं शुरू में हैदराबाद आया था तो यहाँ बौब कट वाली कई महिलाएं दिखीं। आश्चर्य मिश्रित हर्ष हुआ ,मगर अधिकतर स्त्रियाँ निम्न-मध्यम वर्ग से थीं इसलिए थोडा अजीब भी लग रहा था ! ढोल गंवार डेली लेबर वाली औरत और ऐसा फैशन ? आंध्र प्रदेश तो मेरी उम्मीद से भी आगे निकला। जहाँ महिलाओं की इज्ज़त हो, इतनी स्वतंत्रता हो, वह बड़ा ही प्रगतिशील समाज है - ऐसे सुविचार मैं अपने मन में पाले हुए था। ऐसी महिलाओं को दूर से देख कर ही मन में आदर मिश्रित श्रध्दा के भाव उभर आते थे। मगर दिमाग के किसी कोने में एक शक रूपी कीडा मंडरा रहा था। खैर बात आई गयी हो गयी।

कुछ दिन बाद एक मित्र ने तिरुपति के दर्शन की बात कही। फिर क्या था - गूगल लेकर के उठा पटक मचा दी! कैसे जाना है, कहाँ जाना है, कहाँ रुकना है, कहाँ खाना है, दर्शन कैसे होंगे - आदि अनादी सभी सवालों के हल ढूँढ निकाले। आन्ध्र प्रदेश में हैं तो बिना तिरुपति दर्शन के कैसे चलेगा?

इसी खोजबीन में तिरुपति मंदिर के बारे में भी थोडा ज्ञान प्राप्त किया । अचानक कुछ देख कर के अपने सिर पे हाथ रख लिया - अभी तक तेरी ट्युबलाइट क्यों न जली ? मूर्ख ! वो बडे शहरों में रहने वाली तितलियों की तरह फैशन में पागल नहीं बल्कि धर्मांध स्त्रियाँ थीं। तिरुपति के मंदिर में अपने केश दान करके आई थीं। उफ़ मैंने यह पहले क्यों न सोचा।

आगे कुछ अनुसंधान करने पर यह ज्ञात हुआ कि जेनिफर लोपेज़ , पेरिस हिल्टन, निकोल रिची, जेनिफर एनिस्टन और वेनेथ पेल्त्रो जैसी मशहूर हौलीवुड हस्तियाँ भी भारतीय बालों की मुरीद हैं! यह भी पढने में आया कि विक्टोरिया बेकहम जैसी मशहूर अदाकारा हर महीने २००० पौंड (लगभग १ लाख ६० हज़ार रूपये) अपने बालों को "शेप" करने में खर्च करती हैं। मेधा पाटकर को मिल जाएं तो बाल नोंच लें उनके !



लंदन अकेले में ऐसे ५० सैलून हैं जहाँ ये "टेम्पल हेयर" मिलते हैं। बालों के इस लेनदेन में पिछले वर्ष ३०० मिलियन USD (~ १२ अरब रुपये ) का कारोबार हुआ ! इतना पैसा देखकर अब मंदिर समिति के अलावा अब कई बिचोलिये भी बाज़ार में आ चुके हैं। वैसे कुछ फिरंगी क्रिश्चन भी इस मामले को लेकर कुछ उत्तेजित हैं।

जहाँ पहले महिलाएं धार्मिक श्रध्दा और विश्वास के कारण केश दान करती थी वहीं आज उन्हें अपनी केश शोभाबेचने के लिए मजबूर तक किया जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि तिरुपति मंदिर की कमाई का एक बड़ाहिस्सा "बालों" से आता है। पिछले साल तिरुपति मंदिर ने लगभग ३२ करोड़ रूपये इसी तरह नीलामी में कमाए।

बहरहाल हम तिरुपति तो न जा पाए मगर अब बात निकली है तो बता ही दिया।

नए हिन्दी गाने डाउनलोड करें !

दीदी के पास गया था तो वहाँ बच्चों ने लेपटोप पर गाना सुनने के फरमाइश कर दी ! अब आजकल के बच्चों को तड़क भड़क भरे नए गाने ही पसंद आते हैं, पर यहाँ पर U2 के कुछ विडियो के अलावा देव आनंदजी के कुछ पुराने गाने ही पड़े थे पर मरता क्या न करता- गया डाउनलोड करने !

तो वहाँ पर एक अच्छी वेबसाइट मिली। ये जनाब अपने आप को हिन्दी मूवीज और गानों के मुरीद एक आस्ट्रेलियन बताते हैं। सही है गुरु , वहाँ बैठ कर हिन्दी म्यूजिक इंडस्ट्री का बैंड बजा रहे हो ! वैसे अपने को कोई एतराज नही है - आख़िर आप जनता जनार्दन की सेवा ही कर रहे हैं - लगे रहो DJ भाई ! :-)




यदि आप भी कभी मुझ जैसी विपदा मैं फसें , या फिर नए गाने सुनने का शौक रखते हों तो इन जनाब की सेवाओं का जरूर उपयोग करें। कॉपीराइट की टेंशन न लें !

*************** अपडेट २ *************
हिंदी गानों के लिए आप यहाँ भी जा सकते हैं -
http://www.s-anand.net/hindi

हिंदी से सम्बंधित कुछ भी जानकारी प्राप्त करने के लिए रविजी के ब्लॉग पर जाएँ
http://www.rachanakar.org/2009/12/blog-post_4623.html

*************** अपडेट ************
कुछ वेबसाइट्स जहाँ से आप हिंदी गाने डाउनलोड कर सकते हैं (अपने रिस्क पे!):

www.hindisongss.blogspot.com/
www.songs.pk
www.rkmania.com
www.funrocker.com
www.songsblasts.com
www.apniisp.com
www.123musiq.com
www.papuyaar.com
www.cooltoad.com
www.radioreloaded.com

बाजारू ज्ञान ...

आजकल भारत की अर्थव्यवस्था और बाज़ार खरगोश के बच्चों की तरह बढ़ रहे हैं। कुछ ही समय पहले १० -१२ हजार पे किलकारियाँ मारने वाला BSE सेंसेक्स आज २० हजार तक पहुंच के किल्लोलें कर रहा है। इसी तेज़ी का फ़ायदा उठाते हुए मुकेश अम्बानी जी तो दुनिया के सबसे अमीर आदमी हो लिए! साथ ही में भारतीय मुद्रा में भी मजबूती आई है। अब वित्तमंत्री कह रहे हैं कि रूपये में आई इस मजबूती से मुद्रास्फीति की दर पर भी लगाम लगी है (पिछले पांच वर्षों के न्यूनतम स्तर पर है)।



अब हर सिक्के के दो पहलु होते हैं - रूपये की मजबूती के साथ यदि तेल का आयात सस्ता हुआ तो दूसरी तरफ सॉफ्टवेयेर के निर्यात का मुनाफा कम। अब सॉफ्टवेयेर कंपनियों ने मुनाफे की कमी को पूरा करने के लिए शनिवार को भी कार्य दिवस बनाने की बात की तो मुझ जैसों की जान पे बन आई !

पुराने समय की अपेक्षा अब विदेश यात्रा करना पहले ही सस्ता हो चुका है। अब भारत सरकार देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर लगने वाले शुल्क को डॉलर में स्वीकार करने के इनकार कर रही है। यानी अब विदेशी पर्यटकों को ताज महल जैसी इमारतों के दर्शन हेतु शुल्क रूपये (डॉलर में नहीं) में अदा करना होगा !

बीबीसी में छपी इस ख़बर के अनुसार पर्यटन मंत्रालय ने यह कदम डॉलर में रोजम-रोज होने वाली उतार चढाव से बचने के लिए किया है। भारत में हर साल ४० लाख विदेशी पर्यटक आते हैं जिनसे देश को ६५ लाख डॉलर की आमदनी होती है। अब अगर एक साल में ५० पैसे का भी उतार मान लीजिये (वैसे आपकी जानकारी के लिए इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत से अमरीकन डॉलर की अपेक्षा रुपया १० फीसदी चढा है!) तो लग गया न ३२.५ लाख डॉलर तेरह करोड़ रूपये) का चूना . है न काम की बात !

टिप : माफ़ करियेगा, मगर इस पोस्ट का शीर्षक "बाजारू" के बदले "बाजारी" ज्ञान होना चाहिऐ था। बाजारू वर्ड हैस गौट अ नेगेटिव कोन्नोटेशन ;-)

वो पुराने दिन ...

काकेश जी का भारतीय रेलवे के बारे में ब्लॉग पढ़ा तो मुझे भी अपने पुराने दिन याद हो आए. रही रेलवेके खाने की बात. तो याद आया की कभी मैं घर जाते समय मथुरा रेलवे स्टेशन पर रेलवे के जलपान गृहमें खाना खाया करता था. जैसी भोजन की थाली की तस्वीर काकेश जी ने चिपकायी है कुछ कुछ वैसीही . खाना तो बस ठीक-ठाक ही था मगर मथुरा के रेलवे स्टेशन पे वही सबसे अच्छा विकल्प था. प्लेटफोर्म पे लेटे हुए और गुदडी में सिमटे हुए लोग , पुलिसिया रॉब दिखाते हुए जेब में हाथ डालकरघूमता हुआ हवालदार, वेटिंग रूम में बैठकर अपनी ट्रेन का इन्तेजार करते हुए “रिज़र्वेशन” वाले लोग , प्लेटफोर्म पर मंडराते हुए - परेशान नजरों से इधर उधर ताकने वाले “जनरल” लोग, और अगर गलतीसे एसी वाले “बड़े साहब” आ गए तो फ़िर खैर ही नहीं!



आज हवाई जहाज से यात्रा करता हूँ मगर फ़िर भी वह मजा नहीं. हर आदमी बाये मुंह करके बैठा रहताहै. बस ताकते रहिये अधर में! गलती से भी किसी को देख लिया तो यूं हीन नजरों से देखता है मानो कोईअपराध हो गया हो. इतना ही अभिमान है तो इकोनोमी क्लास में क्यों यात्रा करते हैं , जाइये न बिजनेस क्लास में?