आज करीब पाँच साल बाद फिर, मेरे मित्र गणेश चतुर्थी के दिन दनदनाते हुए मेरे घर के अन्दर आये। पिछली बार की तरह इस बार भी कुछ बडबडाते हुए चक्कर काटने लगे। पूर्व अनुभव होने के कारण इस बार हमने पहले ही लड्डू, बर्फी और समोसे की प्लेट उनके आगे कर दी। कॉफ़ी के साथ उनको अन्दर गटकने का इंतजार किया। फिर कहा - "हैप्पी गणेश चतुर्थी "
इस बार वे मुस्कुराने लगे। बोले, "यार तुम तो सही मजे ले रहे हो हमारे" । मैंने कहा, "नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं। त्योहार तो होते ही हैं आपसी सदभाव को बढ़ावा देने के लिए। अपने परिवार, मित्रों और इष्टजनो से मिलने और खुशियाँ बाँटने के लिए। यही तो हमारे देश और धर्म की परंपरा है ..…"
"बस यार", मेरा वाक्य समाप्त होने के पहले ही उन्होंने काट दिया। "परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन का पाठ सफ़ेद दाढ़ी वाले बुजुर्गों को सुनाना। अभी इन सब चीज़ों को सुनने की शक्ति नहीं है मुझमें। तुम बस तकिया इधर सरकाओ ", उन्होंने तख़्त पर लगभग लुढ़कते हुए कहा।
"अच्छा चलो छोड़ो, तुम ये रसगुल्ले चखो, कल ही एक मित्र कोलकाता से लाये हैं ", मैंने तकिया और रसगुल्ले की प्लेट दोनों आगे कर दिए।
"अमाँ क्या बतायें यार, वही मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। पिछले पांच सालों से वही रोना है। गणपति बप्पा के नाम पर पेड शोरगुल। " नियति के अधीन हो चुके इंसान की तरह वे बोले।
"अरे नहीं यार काफी बदलाव आये हैं अब, ग्रीन इकोसिस्टम को मद्देनज़र रखते हुए गणेशजी की प्रतिमा अब मिटटी से बनायी जाती है, कोई केमिकल रंग या आर्टिफिशियल पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया जाता। " हमने तीर छोड़ा।
" अरे आग लगे वो इंडियन आइडल जूनियर को - सब माँ बाप अपने बच्चे को लता मंगेशकर का अगला अवतार बनाने पर तुले हैं। अब आज की ही लो - आरती वगैरह ख़त्म होने के बाद माता पिता अपने सुपुत्र और सुपुत्रियों को माइक पकड़ा देते हैं और वो रियाज़ करना शुरू। बच्चे भी ऐसे नामाकूल - माइक को मुँह के अन्दर घुसेड ऊँचे राग अलापना शुरू ! बच्चों का ख़तम हुआ तो आंटियां क्लासिकल हिंदुस्तानी और कर्नाटिक संगीत पर गला फाड़ना लगती हैं। गणेश जी का बस चले तो नरसिम्हा की तरह अवतार लेकर, प्रतिमा फाड़ बाहर निकलें और अपनी सूंड से लपेट कर माइक के टुकड़े टुकड़े कर दें। "
"अरे नहीं यार बच्चे हैं ", हमने कहा।
"तुम नहीं समझोगे यार", वे बोले। "मैं तो सोच रहा हूँ कि बच्चों की आवाज़ रिकॉर्ड कर रख ली जाए। रोज शाम को बजाऊंगा तो कम से कम घर के मच्छर भागने के काम आएगा।"
ठहाका लगाते हुए हमने टीवी का रिमोट उनके हाथ में दिया और कहा लो तुम ताजा खबरें सुनो। अरे नहीं, यूँ ही ,ऐसे ही, खामखाँ और कुछ ना नुकुर करने के बाद उन्होंने रिमोट हाथ में लिया और तकिया पीछे लगाये तख़्त पे लधर गए। कुछ देर बाद उनके खर्राटों की वजह से मेरा सोना दुर्भर था।
इस बार वे मुस्कुराने लगे। बोले, "यार तुम तो सही मजे ले रहे हो हमारे" । मैंने कहा, "नहीं भाई ऐसी कोई बात नहीं। त्योहार तो होते ही हैं आपसी सदभाव को बढ़ावा देने के लिए। अपने परिवार, मित्रों और इष्टजनो से मिलने और खुशियाँ बाँटने के लिए। यही तो हमारे देश और धर्म की परंपरा है ..…"
"बस यार", मेरा वाक्य समाप्त होने के पहले ही उन्होंने काट दिया। "परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन का पाठ सफ़ेद दाढ़ी वाले बुजुर्गों को सुनाना। अभी इन सब चीज़ों को सुनने की शक्ति नहीं है मुझमें। तुम बस तकिया इधर सरकाओ ", उन्होंने तख़्त पर लगभग लुढ़कते हुए कहा।
"अच्छा चलो छोड़ो, तुम ये रसगुल्ले चखो, कल ही एक मित्र कोलकाता से लाये हैं ", मैंने तकिया और रसगुल्ले की प्लेट दोनों आगे कर दिए।
"अमाँ क्या बतायें यार, वही मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक। पिछले पांच सालों से वही रोना है। गणपति बप्पा के नाम पर पेड शोरगुल। " नियति के अधीन हो चुके इंसान की तरह वे बोले।
"अरे नहीं यार काफी बदलाव आये हैं अब, ग्रीन इकोसिस्टम को मद्देनज़र रखते हुए गणेशजी की प्रतिमा अब मिटटी से बनायी जाती है, कोई केमिकल रंग या आर्टिफिशियल पदार्थ का इस्तेमाल नहीं किया जाता। " हमने तीर छोड़ा।
" अरे आग लगे वो इंडियन आइडल जूनियर को - सब माँ बाप अपने बच्चे को लता मंगेशकर का अगला अवतार बनाने पर तुले हैं। अब आज की ही लो - आरती वगैरह ख़त्म होने के बाद माता पिता अपने सुपुत्र और सुपुत्रियों को माइक पकड़ा देते हैं और वो रियाज़ करना शुरू। बच्चे भी ऐसे नामाकूल - माइक को मुँह के अन्दर घुसेड ऊँचे राग अलापना शुरू ! बच्चों का ख़तम हुआ तो आंटियां क्लासिकल हिंदुस्तानी और कर्नाटिक संगीत पर गला फाड़ना लगती हैं। गणेश जी का बस चले तो नरसिम्हा की तरह अवतार लेकर, प्रतिमा फाड़ बाहर निकलें और अपनी सूंड से लपेट कर माइक के टुकड़े टुकड़े कर दें। "
"अरे नहीं यार बच्चे हैं ", हमने कहा।
"तुम नहीं समझोगे यार", वे बोले। "मैं तो सोच रहा हूँ कि बच्चों की आवाज़ रिकॉर्ड कर रख ली जाए। रोज शाम को बजाऊंगा तो कम से कम घर के मच्छर भागने के काम आएगा।"
ठहाका लगाते हुए हमने टीवी का रिमोट उनके हाथ में दिया और कहा लो तुम ताजा खबरें सुनो। अरे नहीं, यूँ ही ,ऐसे ही, खामखाँ और कुछ ना नुकुर करने के बाद उन्होंने रिमोट हाथ में लिया और तकिया पीछे लगाये तख़्त पे लधर गए। कुछ देर बाद उनके खर्राटों की वजह से मेरा सोना दुर्भर था।
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