श्रीलंका वासी काफी धर्मनिष्ठ हैं - हम धर्मभीरु भारतीयों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है।
हमारी सोच यह है:
हमारा धर्म सिर्फ एक धर्म नहीं वरन "अ वे ऑफ़ लाइफ " है।
सदा से चला आ रहा या फिर सनातन धर्म है।
धर्म तो हमारे कण-कण में बसा हुआ है।
इन फिरंगी लोगों के पास न तो धर्म है न संस्कृति, कई तो नास्तिक हैं ! हे राम !!!
वैसे यह अवधारणा पूर्णतः सही नहीं है। देखिये, इनके अनुसार अमरीका में कम से कम ३ राज्य ऐसे हैं जिनके जीवन में धर्म की भूमिका भारत से ज्यादा है! लेकिन श्रीलंका वासियों की धर्मनिष्ठा के बारे में कोई मतभेद नहीं है। ९९ % श्रीलंका वासी मानते हैं कि धर्म उनके जीवन का एक जरुरी हिस्सा है - यह विश्व में तीसरी सबसे बड़ी संख्या है (मिश्र और बांग्लादेश के बाद)।
श्रीलंका का प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म है। कुछ हिन्दू भी हैं, मुख्यतः तमिल जो उत्तर या मध्य श्रीलंका में रहते हैं। वे भारत से श्रीलंका चाय के बागानों में काम करने के लिए लाये गए थे। डाम्बुला में जिस होटल में हम रुके थे उसका मालिक एक तमिल था जिसके पूर्वज भी उन श्रमिकों में से एक थे। उनके परिवार का एक हिस्सा अभी भी तमिलनाडु में ही रहता है। हमें भारतीय जानकार वह काफी प्रसन्न हुआ। मगर साथ ही निराश भी हुआ यह जानकर कि मुझे तमिल नहीं आती थी। आखिर में आशा भरे स्वर में बोला " कुंचुम कुंचुम ?" , मगर मैं "तमिल तेरियादु " या " तमिल इल्ला " से आगे न बढ़ पाया।
श्रीलंका में भगवान बुद्ध और हिन्दू देवी देवताओं के बीच में अच्छा तालमेल है। बसों में बुद्ध के साथ लक्ष्मी, विष्णु, गणेश और सरस्वती के चित्र सजे रहते हैं। शिवजी लेकिन कहीं न दिखाई दिए। इसकी असली वजह मुझे कैंडी के "पवित्र दन्त" मंदिर में जाकर पता चली। श्रीलंका के 'धार्मिक' इतिहास में शैव मत नकारात्मक रूप से दर्शाया गया है। दक्षिण भारतीय शैव राज्य खासकर चोल ने श्रीलंका पर काफी हमले किये थे। इन हमलों के दौरान काफी लूटपाट और बौद्ध स्तूपों का ध्वंस हुआ था। बौद्ध मत के लिए पवित्र माने जाने वाले पवित्र दन्त को भी नष्ट करने का प्रयास किया गया था। इन्ही सब वजहों से शिवजी को आज कहीं जगह न मिल पायी। हालाँकि शैव मंदिर (कोविल) जाफना में प्रचुर और कोलम्बो में अल्प संख्या में आज भी उपस्थित हैं।
मुहम्मद के अनुयाई, जो अरब सौदागरों के साथ आये और यहीं बस गए, भी लगभग जनसँख्या का १० प्रतिशत हैं। महिलायें अपने काले चोंगों के द्वारा दूर से ही पहचानी जा सकती हैं। वैसे मैंने चमकीले सलवार कमीज पहने हुए भी कुछ प्रगतिशील महिलाएं भी देखीं। श्रीलंका में अपनी यात्रा के दौरान मैंने बहुत कम मस्जिदें देखीं।
पुर्तगाली, डच और ब्रितानी शासनों के कारण ईसाई मत के कुछ अनुयायी भी श्रीलंका में मौजूद हैं। मैंने कोलम्बो के संत अन्थोनी चर्च में कुछ मोमबत्तियाँ जलायीं। मगर मेरे पीछे मुड़ते ही एक आदमी ने उन मोमबत्तियों को बुझाकर किनारे रख दिया। पता नहीं इससे मेरी प्रार्थना उन तक पहुँच पाएगी या नहीं मगर मुझे लगा कि शायद इससे उन मोमबत्तियों का बेहतर प्रयोग जरूर हो जायेगा।
श्रीलंका में नगर के मुख्य स्थानों और चौकों पर बुद्ध, गणेश, लक्ष्मी और येशु की विशाल मूर्तियाँ शीशे की पेटियों में रखी रहती हैं। ये पेटियां बहुत साफ़ सुथरी रखी जाती हैं और भारत की तरह इन पर फूल, अन्न, रंग, कुमकुम या अगरबत्ती का काला धुआं नहीं छाता। इन पेटियों की निगरानी करने के लिए कोई साधू,सन्यासी या महंत भी नहीं होता।
अगले अंक में मैं श्रीलंका में बौद्ध धर्म के बदलते रूप के बारे में लिखूंगा।
चित्र साभार - विकिपीडिया से श्रीमान Obi2canibe
पिछली कड़ियाँ:
श्रीलंका - एक भूमिका
सफाई पसंद श्रीलंका
हमारी सोच यह है:
हमारा धर्म सिर्फ एक धर्म नहीं वरन "अ वे ऑफ़ लाइफ " है।
सदा से चला आ रहा या फिर सनातन धर्म है।
धर्म तो हमारे कण-कण में बसा हुआ है।
इन फिरंगी लोगों के पास न तो धर्म है न संस्कृति, कई तो नास्तिक हैं ! हे राम !!!
वैसे यह अवधारणा पूर्णतः सही नहीं है। देखिये, इनके अनुसार अमरीका में कम से कम ३ राज्य ऐसे हैं जिनके जीवन में धर्म की भूमिका भारत से ज्यादा है! लेकिन श्रीलंका वासियों की धर्मनिष्ठा के बारे में कोई मतभेद नहीं है। ९९ % श्रीलंका वासी मानते हैं कि धर्म उनके जीवन का एक जरुरी हिस्सा है - यह विश्व में तीसरी सबसे बड़ी संख्या है (मिश्र और बांग्लादेश के बाद)।
श्रीलंका का प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म है। कुछ हिन्दू भी हैं, मुख्यतः तमिल जो उत्तर या मध्य श्रीलंका में रहते हैं। वे भारत से श्रीलंका चाय के बागानों में काम करने के लिए लाये गए थे। डाम्बुला में जिस होटल में हम रुके थे उसका मालिक एक तमिल था जिसके पूर्वज भी उन श्रमिकों में से एक थे। उनके परिवार का एक हिस्सा अभी भी तमिलनाडु में ही रहता है। हमें भारतीय जानकार वह काफी प्रसन्न हुआ। मगर साथ ही निराश भी हुआ यह जानकर कि मुझे तमिल नहीं आती थी। आखिर में आशा भरे स्वर में बोला " कुंचुम कुंचुम ?" , मगर मैं "तमिल तेरियादु " या " तमिल इल्ला " से आगे न बढ़ पाया।
श्रीलंका में भगवान बुद्ध और हिन्दू देवी देवताओं के बीच में अच्छा तालमेल है। बसों में बुद्ध के साथ लक्ष्मी, विष्णु, गणेश और सरस्वती के चित्र सजे रहते हैं। शिवजी लेकिन कहीं न दिखाई दिए। इसकी असली वजह मुझे कैंडी के "पवित्र दन्त" मंदिर में जाकर पता चली। श्रीलंका के 'धार्मिक' इतिहास में शैव मत नकारात्मक रूप से दर्शाया गया है। दक्षिण भारतीय शैव राज्य खासकर चोल ने श्रीलंका पर काफी हमले किये थे। इन हमलों के दौरान काफी लूटपाट और बौद्ध स्तूपों का ध्वंस हुआ था। बौद्ध मत के लिए पवित्र माने जाने वाले पवित्र दन्त को भी नष्ट करने का प्रयास किया गया था। इन्ही सब वजहों से शिवजी को आज कहीं जगह न मिल पायी। हालाँकि शैव मंदिर (कोविल) जाफना में प्रचुर और कोलम्बो में अल्प संख्या में आज भी उपस्थित हैं।
मुहम्मद के अनुयाई, जो अरब सौदागरों के साथ आये और यहीं बस गए, भी लगभग जनसँख्या का १० प्रतिशत हैं। महिलायें अपने काले चोंगों के द्वारा दूर से ही पहचानी जा सकती हैं। वैसे मैंने चमकीले सलवार कमीज पहने हुए भी कुछ प्रगतिशील महिलाएं भी देखीं। श्रीलंका में अपनी यात्रा के दौरान मैंने बहुत कम मस्जिदें देखीं।
पुर्तगाली, डच और ब्रितानी शासनों के कारण ईसाई मत के कुछ अनुयायी भी श्रीलंका में मौजूद हैं। मैंने कोलम्बो के संत अन्थोनी चर्च में कुछ मोमबत्तियाँ जलायीं। मगर मेरे पीछे मुड़ते ही एक आदमी ने उन मोमबत्तियों को बुझाकर किनारे रख दिया। पता नहीं इससे मेरी प्रार्थना उन तक पहुँच पाएगी या नहीं मगर मुझे लगा कि शायद इससे उन मोमबत्तियों का बेहतर प्रयोग जरूर हो जायेगा।
श्रीलंका में नगर के मुख्य स्थानों और चौकों पर बुद्ध, गणेश, लक्ष्मी और येशु की विशाल मूर्तियाँ शीशे की पेटियों में रखी रहती हैं। ये पेटियां बहुत साफ़ सुथरी रखी जाती हैं और भारत की तरह इन पर फूल, अन्न, रंग, कुमकुम या अगरबत्ती का काला धुआं नहीं छाता। इन पेटियों की निगरानी करने के लिए कोई साधू,सन्यासी या महंत भी नहीं होता।
अगले अंक में मैं श्रीलंका में बौद्ध धर्म के बदलते रूप के बारे में लिखूंगा।
चित्र साभार - विकिपीडिया से श्रीमान Obi2canibe
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