रविवार, अगस्त 25, 2013

श्रीलंका के धर्म सम्प्रदाय

श्रीलंका वासी काफी धर्मनिष्ठ हैं - हम धर्मभीरु भारतीयों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है।

हमारी सोच यह है:

हमारा धर्म सिर्फ एक धर्म नहीं वरन  "अ वे ऑफ़ लाइफ है।
सदा से चला आ रहा या फिर सनातन धर्म है।
धर्म तो हमारे कण-कण में बसा हुआ है।
इन फिरंगी लोगों के पास न तो धर्म है न संस्कृति, कई तो नास्तिक हैं ! हे राम !!!

वैसे यह अवधारणा पूर्णतः सही नहीं है। देखिये, इनके अनुसार अमरीका में कम से कम ३ राज्य ऐसे हैं जिनके जीवन में धर्म की भूमिका भारत से ज्यादा है! लेकिन श्रीलंका वासियों की धर्मनिष्ठा के बारे में कोई मतभेद नहीं है। ९९ % श्रीलंका वासी मानते हैं कि धर्म उनके जीवन का एक जरुरी हिस्सा है - यह विश्व में तीसरी सबसे बड़ी संख्या है (मिश्र और बांग्लादेश के बाद)।


श्रीलंका का प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म है। कुछ हिन्दू भी हैं, मुख्यतः तमिल जो उत्तर या मध्य श्रीलंका में रहते हैं। वे  भारत से श्रीलंका चाय के बागानों में काम करने के लिए लाये गए थे। डाम्बुला में जिस होटल में हम रुके थे उसका मालिक एक तमिल था जिसके पूर्वज भी उन श्रमिकों में से एक थे। उनके परिवार का एक हिस्सा अभी भी तमिलनाडु में ही रहता है। हमें भारतीय जानकार वह काफी प्रसन्न हुआ। मगर साथ ही निराश भी हुआ यह  जानकर कि मुझे तमिल नहीं आती थी। आखिर में आशा भरे स्वर में बोला " कुंचुम कुंचुम ?" , मगर मैं "तमिल तेरियादु " या " तमिल इल्ला " से आगे न बढ़ पाया।

श्रीलंका में भगवान बुद्ध और हिन्दू देवी देवताओं के बीच में अच्छा तालमेल है। बसों में बुद्ध के साथ लक्ष्मी, विष्णु, गणेश और सरस्वती के चित्र सजे रहते हैं। शिवजी लेकिन कहीं न दिखाई दिए। इसकी असली वजह मुझे कैंडी के "पवित्र दन्त" मंदिर में जाकर पता चली। श्रीलंका के 'धार्मिक' इतिहास में शैव मत नकारात्मक रूप से दर्शाया गया है। दक्षिण भारतीय शैव राज्य खासकर चोल ने श्रीलंका पर काफी हमले किये थे। इन हमलों के दौरान काफी लूटपाट और बौद्ध स्तूपों का ध्वंस हुआ था। बौद्ध मत के लिए पवित्र माने जाने वाले पवित्र दन्त को भी नष्ट करने का प्रयास किया गया था। इन्ही सब वजहों से शिवजी को आज कहीं जगह न मिल पायी। हालाँकि शैव मंदिर (कोविल) जाफना में प्रचुर और कोलम्बो में अल्प संख्या में आज भी उपस्थित हैं।

मुहम्मद के अनुयाई, जो अरब सौदागरों के साथ आये और यहीं बस गए, भी लगभग जनसँख्या का १० प्रतिशत हैं। महिलायें अपने काले चोंगों के द्वारा दूर से ही पहचानी जा सकती हैं। वैसे मैंने चमकीले सलवार कमीज पहने हुए भी कुछ प्रगतिशील महिलाएं भी देखीं। श्रीलंका में अपनी यात्रा के दौरान मैंने बहुत कम मस्जिदें देखीं।

पुर्तगाली, डच और ब्रितानी शासनों के कारण ईसाई मत के कुछ अनुयायी भी श्रीलंका में मौजूद हैं। मैंने कोलम्बो के संत अन्थोनी चर्च में कुछ मोमबत्तियाँ जलायीं। मगर मेरे पीछे मुड़ते ही एक आदमी ने उन मोमबत्तियों को बुझाकर किनारे रख दिया। पता नहीं इससे मेरी प्रार्थना उन तक पहुँच पाएगी या नहीं मगर मुझे लगा कि शायद इससे उन मोमबत्तियों का बेहतर प्रयोग जरूर हो जायेगा।

श्रीलंका में नगर के मुख्य स्थानों और चौकों पर बुद्ध, गणेश, लक्ष्मी और येशु की विशाल मूर्तियाँ शीशे की पेटियों में रखी रहती हैं। ये पेटियां बहुत साफ़ सुथरी रखी जाती हैं और भारत की तरह इन पर फूल, अन्न, रंग, कुमकुम या अगरबत्ती का काला धुआं नहीं छाता। इन पेटियों की निगरानी करने के लिए कोई साधू,सन्यासी या महंत भी नहीं होता।

अगले अंक में मैं श्रीलंका में बौद्ध धर्म के बदलते रूप के बारे में लिखूंगा।

चित्र साभार - विकिपीडिया से श्रीमान Obi2canibe

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श्रीलंका - एक भूमिका  
सफाई पसंद श्रीलंका 

गुरुवार, अगस्त 22, 2013

सफाई पसंद श्रीलंका

मेरी अपेक्षा थी कि श्रीलंका भारत की ही तरह एक विकासशील राष्ट्र है और वहाँ की संस्कृति और समाज भारत के दक्षिण प्रदेशों, प्रमुखतः तमिलनाडु से मेल खाती होगी।  मैंने यह भी मान लिया था कि श्रीलंका ने उन्ही से तीसरी दुनिया के देशों की समस्याएँ भी विरासत में पाई होंगी। वैसे ये कुछ हद तक सही भी माना जा सकता है मगर कुछ मामलों में श्रीलंका भारत से कहीं बेहतर है - सफाई उनमे से एक है। वैसे भारतीय काफी सफाईपसंद होते हैं, मगर सिर्फ अपने घर की चार दीवारों के अन्दर। घर का कूड़ा सड़क पर डालने में कोई गुरेज नहीं !

श्रीलंका काफी (एक भारतीय के परिपेक्ष्य से) साफ़ सुथरा है। अपनी यात्रा के दौरान मुझे कहीं भी कूड़े के ढेर नहीं दिखाई पड़े, न ही सड़ता हुआ खाना और अन्य जैविक कचरा। कभी कभार कुछ सड़कों से किनारे पर एक आधा कागज़ या पॉलीथिन दिखाई दिया मगर सामान्यतः काफी सफाई थी।


पता नहीं इसके पीछे क्या वजह है? क्या वहाँ की जनता इधर उधर कूड़ा करकट नहीं फैलाती या फिर स्थानीय प्रशासन सफाई के मामले में काफी सजग है या फिर वहाँ के सफाई कर्मचारी अति कार्यक्षम हैं! पहले लगा कि हो जनसँख्या कम होने की वजह से वहाँ गन्दगी कम हो, मगर भारत और श्रीलंका के जनसँख्या घनत्व में इतना भी फर्क नहीं है। जो भी वजह हो, किसी भारतीय के लिए तो यह एक सुखद अनुभव है।

चलते चलते 
भारतीय (हिंदी) सिनेमा और क्रिकेट खिलाड़ी श्रीलंका में काफी लोकप्रिय हैं। एअरपोर्ट से बाहर निकल कर जिन जनाब से मेरा पाला पड़ा (एक पुलिसकर्मी) वे शाहरुख़ खान के बारे में टर्राने लगे। मन तो उनको खरीखोटी सुनाने का था मगर रात के ३ बजे बहसियाने की हिम्मत न थी। वैसे भी मलिंगा और कोहली का उल्लेख मैं थोडा शांत हो चुका था तो मैंने उसे जाने दिया।

ये चित्र श्रीलंका का नहीं है। यह जयपुर से है। स्रोत - विकीमिडिया

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श्रीलंका एक भूमिका 

रविवार, अगस्त 18, 2013

श्रीलंका - एक भूमिका

आयुबोवान।

मैं यह चिठ्ठा अपनी श्रीलंका यात्रा के अनुभवों को सहेजने के लिए लिख रहा हूँ। मेरे ये अनुभव श्रीलंका के इतिहास, समाज, संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का एक विवरण हैं। जब भी मैं इन महान विषयों पर शेखियाँ न बघार पाऊँ तो कुछ छुटमिल बातें लिखूंगा। यह संभव है कि अवलोकन करते समय मैं कई बार किसी बात को समझने में चूका हूँ या फिर किसी चीज़ को समझने में मैंने गलत अनुमान लगाया हो। अगर ऐसा है तो मैं उसे सुधार करने में देर न करूँगा।

मैं इसे एक श्रीलंका की टूरिस्ट गाइड के रूप में नहीं लिख रहा हूँ मगर अगर इसका उपयोग उस रूप में भी किया जाये तो मुझे मान्य है। मैं यथासंभव यात्रा सम्बन्धी जानकारी देने का प्रयास भी करूँगा। यदि पाठक के पास कोई विशेष सवाल हैं तो मैं उनका भी उत्तर देने का प्रयास करूँगा यद्यपि ऐसे सवालों का उत्तर देने में लोनली प्लेनेट या ट्रिप एडवाइजर पर मौजूद विशिष्ठजन मुझसे कहीं ज्यादा सक्षम हैं।


यह प्रविष्टि मेरे लिए इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा मेरे मन में श्रीलंका के प्रति विद्यमान पूर्वाग्रहों को एक चुनौती मिली है। या यूँ कहें कि उन पूर्वाग्रहों का विनाश हुआ है। ऐसे में मुझे प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन का एक उद्धरण याद आ रहा है।

" देशाटन कट्टरपन और संकीर्ण मानसिकता के लिए अचूक रामबाण है और इस वजह से हम में से कई लोगों को इसकी सख्त जरुरत है। दूसरे व्यक्तियों और चीज़ों के बारे में खुले, उदारवादी और हितैषी विचार कूप मंडूक होकर नहीं बनाये जा सकते। "

मेरा मानना था कि मैं श्रीलंका के बारे में अपने विचार एक भारतीय के दृष्टिकोण से न रखूं वरन श्रीलंका को एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक की तरह देखूं।  मगर लगता है कि यह न तो संभव होगा और न उचित। अवचेतन मन किसी भी विचार को अपने रंग में रँगे बिना कहाँ मानता है भला ! वैसे भी मनुष्य और उसके पूर्वाग्रहों को कौन अलग कर पाया है - वही तो उसकी असली पहचान है। और कुछ नहीं तो कम से कम वे इन नीरस प्रविष्टियों में थोडा रस तो भर पाएँगी।

विचार यह है कि हर एक विषय पर एक नयी प्रविष्टि लिखूं।  उम्मीद है कि मुझमें इतना अनुशासन होगा ! मौलिक रूप से यह प्रविष्टियाँ मैं अपने अंग्रेजी के चिट्ठे पर लिख रहा हूँ।  वहाँ लिखने के बाद ही उसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रकाशित करूँगा। वैसे मैं दोनों ही भाषाओँ में पैदल हूँ तो उम्मीद है कि पाठक को उसका अंतर महसूस नहीं होगा।

रविवार, अगस्त 04, 2013

दास्ताँ-ए-कॉमेडी

किन्ही जनाब ने कहा है - "आप किसी मुल्क के किरदार के बारे में अंदाज़ा लगाना चाहते हैं तो यह देखिये कि उस मुल्क के लोग किन चीज़ों पर हँसते हैं"

आज के ज़माने में आपको अगर अंदाज़ा लगाना है तो आपको किसी दूर मुल्क जाने की तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है। सारी कायनात का इल्म आपकी मुट्ठी में हो सकता है बस जरा अँगुलियों को टपटपाने की हरकत करें! वैसे जरा अपने दामन पर नज़र डालें और देखें कि कॉमेडी के नाम पर क्या परोसा जा रहा है। लोग ठहाके मार हँस रहे है मुझे क्यूँ शर्मसार महसूस हो रहा है ये फिल्में और टीवी सीरियल देखकर?


मुनासिब शेर अर्ज है -

ख्वाहिश ए क़ल्ब है कि आज जी भर कर हँस लें
इन पर तो आसूँ भी बहाना ज़ाया है यारों।

मालूम है कि अभी नाउम्मीदी का माहौल है चारों तरफ,
पर क्या अब हँस भी नहीं सकते इन शोशों के बिना?

मुतब्बस्सिम है जहाँ ये तमाशा नज़र कर
अपनी तो ख़ुशी ने भी ख़ुदकुशी कर ली यारों।

Image Courtesy - Wikipedia (for non-profit use on the blog)