रविवार, सितंबर 09, 2012

गेंद

कुछ दिन पहले एक सहयोगी के सुपुत्र के जन्मदिवस पर जाना हुआ। वहीँ यह घटनाएं घटित हुई थी।

केक काटने की रीति से पहले माता पिता ने सगर्व पुत्र को सबके सामने प्रचारित किया। सोफे के पीछे से सर नीचे किये हुए एक "लिटिल मास्टर" प्रस्तुत हुए। गर्दन को चहुँ ओर चकराते और हाथ की उँगलियों को आपस में उलझाते हुए यह सुकुमार आगे बढे। अपने माता पिता के अनुसार उनके सुपुत्र विज्ञान, ज्यामित्री, खगोलशास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में निपुण थे। नगर के सबसे महंगे कोचिंग इंस्टिट्यूट में वे अल्पायु से ही IIT के लिए तैयारी कर रहे थे।

पानी का क्वथनांक, ग्रहों का अनुक्रम, पाइथागोरस का सिद्धांत सब एक-एक कर उनकी जिव्हा पर अवतरित हुए। मर्चेंट ऑफ़ वेनिस से उद्धृत कर "हर चमकने वाली चीज़ सोना नहीं होती" ऐसा प्रमेय उन्होंने प्रदर्शित किया। युवा अवस्था में समाज के मूर्धन्य खंड बनने का भाव भी उस बालक ने प्रकट किया।

माता पिता फूल कर कुप्पा थे। माता इतने प्रतिभाशाली पुत्र को जन्मने पर खुद को बधाईपात्र मान रही थी और पिता सोच रहे थे कि पुत्र के उच्च सरकारी अफसर या नेता बनने पर उनके पास आने वाली सिफारिशों को वे कैसे संचलित करेंगे।

बच्चा संग साथियों को लेकर बाग़ में छुपकर आम चुराने की तरकीब बनाने वाला नटखट कम और Astroboy ज्यादा लग रहा था। बाकी विधाओं का तो पता नहीं मगर रट्टाशास्त्र में यक़ीनन पी एच डी करेंगे ऐसा मेरा मत था। बालपन में सरलता का ऐसा ह्रास देखकर मैं चिंतित था।


अब सब प्रस्तुतजन अपने-अपने बाल गोपाल की प्रतिभा का बखान करने लगे थे। अब तक बात ट्विंकल-ट्विंकल लिट्टिल स्टार, बा-बा ब्लैक शीप, जैक एंड जिल, जॉनी-जॉनी यस पापा से शुरू हो यत्र तत्र अन्यत्र पहुँच चुकी थी।

अंततोगत्वा यह प्रख्यान सम्पान हुआ और किन्ही कृपालु जन ने उन बाल से पूछा - " चलो यह सब सही रहा, अब बताओ तुम्हे क्या उपहार चाहिए?"

महफ़िल में सरसरी सी फ़ैल गयी। अरे इतना प्रतिभावान बालक है, क्या ही मांग बैठे? यह सोच सबके मन में थी। पीछे कुछ सज्जन "इन्सैक्लोपीडिया ब्रितानी" या "शेकस्पियर का संपूर्ण संकलन" पर शर्त लगा रहे थे।

बालक का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा! कुछ संकुचाते, कुछ इठ्लाते हुए मुख पर रखे मुखौटे को मानो उतार, कृतज्ञ भाव से उसने कहा - "गेंद"

आगे का कथानक जानने में रूचि न होते हुए मैंने तृप्त-सम्पुष्टित हो द्वार की ओर मुख किया।

नोट - यह रचना पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की लघुकथा "बालक बच गया" को समर्पित है।

चित्र साभार - http://www.freedigitalphotos.net/