शनिवार, सितंबर 20, 2014

चन्दूमल और उनका ठेला


सड़े आम हैं, पका है केला,
कच्चे सेब का लगा है मेला।
फीकी नाशपाती, खट्टेअंगूर,
खाए न इन्हे कोई लंगूर।।

ठेले पर सब रखकर फल,
चले बाजार को चन्दूमल।
फटी है टोपी, बिखरे बाल,
चन्दूमल, पूरे कंगाल।।

मैली कमीज, पीली बनियान,
चप्पलों में हो रही तानातान।
टेढ़े दांत और तिरछी चाल,
गर्मी से हैं हाल बेहाल।।

गलियों में लग रही हैं हाँक,
सब जन करते झांकाझांक।
रोक रोक कर भाव जो पूछें,
चन्दूमल तो अकड़ें मूछें।।

दिन दिन भर गलियों में घूमें,
साँझ भई तो घर पर झूमें।
रोज निकलना, रोज ही आना,
जीवन का यह ताना बाना।।

एक समय था जीवन का वह, छूट गया कहीं लगता पीछे,
धुंधली सी बस याद बची है, खत्म हुआ जल अब कहूँ सींचें।
जीवन भरा था आशाओं से, चहुँ ओर था छाया मेला,
आज तो बस बचा है भैया, चन्दूमल और उनका ठेला।।