रविवार, सितंबर 22, 2013

अर्थ और अनर्थ

मेरी माँ कहा करती थी चिंता और चिता में सिर्फ एक बिंदु का ही फर्क है। मतलब ये कि अर्थ का अनर्थ होने में ज्यादा देर नहीं लगती अगर सही शब्दों का इस्तेमाल न किया जाये तो। अमरीकन लेखक मार्क ट्वेन ने भी कहा है - " स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ते समय सावधानी बरतें , एक गलत छपाई से आप मर सकते हैं "। वैसे अंग्रेजी फिल्म "Into The Wild" में फिल्म का नायक अकेले अलास्का के जंगल में रहते हुए एक जहरीले पौधे को सुरक्षित समझ खा लेता है और मर जाता है। और भी कई उदाहरण ढूंढे जा सकते हैं। 

खैर, और ज्यादा चूं चपड़ किये बिना मुद्दे पर आते हैं। यूंकी इस चिट्ठे पर कई गैर हिंदी भाषी भी आते हैं इसलिए उनकी सुविधा के लिए मैं चिट्ठे पर गूगल का अनुवादक लगा रहा था। लगाने के बाद जाँच पड़ताल के लिए मैंने एक टेस्ट किया - चिट्ठे का अंग्रेजी में अनुवाद कर, परिणाम देखिये -


पोस्ट का जो अनुवाद हुआ वो छोड़िये, चिप्पियों का तो सत्यानाश कर दिया गूगल ने। "यूँ ही" नामक निश्छल चिप्पी का बड़ा ही बेहूदा अनुवाद किया है "Fuckin"! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओँ में भी ऐसा ही भद्दा अनुवाद किया है। क्या सोचती होगी विश्व की जनता - हम हिंदुस्तानी कैसे गंदे विषयों पर लिखते हैं। 

छि ! आज समझ आया कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश अपने नागरिकों को क्यों हमारे देश में यात्रा करने के विरुद्ध सलाह देते हैं। सब गूगल का ही दोष है! सोच रहा हूँ देशवासियों की तरफ से मानहानि का दावा ठोक दूं। 

वैसे अगर आपकी सतयुगी आत्मा को इसका अर्थ ज्ञात न हो तो यहाँ क्लिक करें। 

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