श्रीलंका में बौद्ध धर्म करीब २४०० साल पहले सम्राट अशोक द्वारा लाया गया था। सम्राट अशोक ने अपने बेटे महिंदा को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा था। जिस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर भगवान बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति की थी उसकी एक शाखा भी उस समय श्रीलंका लायी गयी थी। आज वह वृक्ष, जिसे बोधि वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, बौद्ध धर्म के अनुयायिओं के लिए एक तीर्थस्थान है।
श्रीलंका में बौद्ध धर्म का इतिहास अविच्छिन्न रहा है। भारत, जहाँ बौद्ध धर्म का उद्गम हुआ और जहाँ वह विशाल मौर्य साम्राज्य का राज्य धर्म था, अपनी पकड़ बनाये न रह पाया। एक शैव राजा ने बोधि पेड़ कटवा दिया। नालंदा विश्वविद्यालय, जो अपने समय में विश्व के सबसे बड़े ज्ञानकेंद्र में से एक था, मुस्लिम आतताइयों द्वारा हमले में नष्ट किये जाने के बाद तीन महीनों तक जलता रहा। बौद्ध स्तूप और विहार तोड़ दिए गए। एक बार जब राजनैतिक समर्थन चला गया तो फिर बौद्ध धर्म के लिए राह कठिन थी।
बौद्ध धर्म वैदिक संस्कृति और धर्मकार्यों में होने वाली हिंसा, यज्ञों और कर्मकाण्डो के प्रपंचों और जाति भेदभाव के विरोध में जन्मा था। मगर अहिंसा परमो धर्मः का घोष जो बौद्ध धर्म से प्रारंभ हुआ था उसे हिन्दू मतों ने आत्मसात कर लिया। बौद्ध संघ और तंत्रवाद जैसे बौद्ध धर्म के कई अन्य जड़सूत्र, शैव और वैष्णव मतों ने अपनाये। कुछ समय बाद बौद्ध धर्म अपनी पहचान खो चुका था। रही सही कसर शंकराचार्य ने पूरी कर दी। सनातन धर्म का पुनर्जागरण अब पूर्ण हो चुका था और जल्द ही भगवान बुद्ध विष्णु के एक अवतार मात्र रहा गए। जैसे असंख्य छोटे छोटे नदी नाले और स्रोत गंगा में मिल अपनी व्यक्तिक पहचान खो देते हैं वही हाल बौद्ध धर्म का हुआ। वैसे मजेदार बात यह है कि श्रीलंका में विष्णु बौद्ध मंदिरों के चार संरक्षकों में से एक माने जाते हैं!
श्रीलंका में भी बौद्ध सिंहल राजाओं को दक्षिण भारतीय शैव हिन्दू साम्राज्यों के हमले का सामना करना पड़ा था। इनमें सबसे ज्यादा, थंजावुर के भव्य और विशाल मंदिरों के निर्माता, राजाराज चोल १ और उसके पुत्र राजेंद्र चोल १ का हाथ था जिन्होंने सिंहलों पर हमला कर उनकी राजधानी अनुराधापुर को ध्वस्त कर दिया और पोलोनारुवा में नयी राजधानी स्थापित की। आज ये दोनों ही यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर साईट घोषित हैं।
चोल अपने साथ शैव धर्म भी श्रीलंका में लाये और कुछ समय के लिए बौद्ध धर्मी राजाओं ने दक्षिण श्रीलंका के घने जंगलों में पनाह ली। श्रीलंका का राजनैतिक इतिहास काफी उथल पुथल भरा रहा है। श्रीलंका की राजगद्दी पर चोल, पांड्य, सिंहल, कलिंग, ब्रितानी, डच, पुर्तगाली इत्यादि ने अधिकार जताया है। श्रीलंका की राजधानी एक शहर से दूसरे और दूसरे से तीसरे शहर में विस्थापित हुई। मगर बौद्ध धर्म ने पकड़ बनायी रखी। विक्रमबाहू १ और पराक्रमबाहू ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और बर्मा के बौद्ध साम्राज्य की मदद से बौद्ध मठों की स्थापना की।
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के दंत को हासिल करने वाला ही श्रीलंका पर शासन का अधिकारी होगा। भगवान बुद्ध का दन्त उनके अंतिम संस्कार के अवशेषों में से बचा कर रख लिया गया था। वैसे यह एक लम्बी कहानी है और फिर कभी सुनाई जाएगी। आज यह दन्त ड़ाम्बुला के पवित्र दन्त मंदिर में रखा गया है और झाँकी के दौरान शहर में घुमाया जाता है। श्रीलंका में एसारा पेराहारा (दन्त का त्योहार) आज भी जुलाई /अगस्त के माह में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन काफी भारी संख्या में लोग उस दन्त के दर्शन करने के लिए यहाँ आते हैं। काफी रंग बिरंगा अवसर है यह, जिसमे हाथियों को सजाकर शहर में घुमाया जाता है, कुछ -कुछ केरल के त्रिचूर पूरम की तरह। संयोग से मैं उस दिन कैंडी में ही था। मगर भीड़, आग उगल कर नाच करने वाले और रंग बिरंगे हाथी मैंने भारत में बहुत देखे हैं इसलिए मैं यह सब छोड़ कोलम्बो चला गया।
वैसे मेरा मूल विचार श्रीलंका में बौद्ध धर्मं के बदलते हुए रूप के बारे में लिखने का था मगर लगता है कि मैं थोडा इधर उधर भटक गया हूँ। वैसे यह भी जरुरी था। अब वह अगली कड़ी का विषय होगा।
चलते चलते
पवित्र दन्त मंदिर के निकट एक पिज़्ज़ा हट का रेस्तरां है जो पेराहारा की वजह से बंद था। उस दिन रेस्तरां को एक दर्शक दीर्घा में परिवर्तित कर दिया गया था जहाँ आप सीट खरीद कर जुलूस के मजे ले सकते हैं। वहां एक जनाब मुझे एक टिकट ४००० श्रीलंका रुपयों में बेचने की कोशिश कर रहे थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं कोलम्बो जा रहा हूँ तो वे २००० रुपयों में तैयार हो गए। मैं काफी प्रयासों के बाद ही उनको इस बात का विश्वास दिला पाया कि मैं सही में शहर छोड़ कर जा रहा था। और फिर अपने चेहरे पर १००० वाट की मुस्कान लाकर वह बोला - "आप जरुर पंजाब से होंगे " !
पिछली कड़ियाँ :
श्रीलंका - एक भूमिका
सफाई पसंद श्रीलंका
श्रीलंका के धर्म सम्प्रदाय
अनुराधापुर का बोधि वृक्ष |
श्रीलंका में बौद्ध धर्म का इतिहास अविच्छिन्न रहा है। भारत, जहाँ बौद्ध धर्म का उद्गम हुआ और जहाँ वह विशाल मौर्य साम्राज्य का राज्य धर्म था, अपनी पकड़ बनाये न रह पाया। एक शैव राजा ने बोधि पेड़ कटवा दिया। नालंदा विश्वविद्यालय, जो अपने समय में विश्व के सबसे बड़े ज्ञानकेंद्र में से एक था, मुस्लिम आतताइयों द्वारा हमले में नष्ट किये जाने के बाद तीन महीनों तक जलता रहा। बौद्ध स्तूप और विहार तोड़ दिए गए। एक बार जब राजनैतिक समर्थन चला गया तो फिर बौद्ध धर्म के लिए राह कठिन थी।
बौद्ध धर्म वैदिक संस्कृति और धर्मकार्यों में होने वाली हिंसा, यज्ञों और कर्मकाण्डो के प्रपंचों और जाति भेदभाव के विरोध में जन्मा था। मगर अहिंसा परमो धर्मः का घोष जो बौद्ध धर्म से प्रारंभ हुआ था उसे हिन्दू मतों ने आत्मसात कर लिया। बौद्ध संघ और तंत्रवाद जैसे बौद्ध धर्म के कई अन्य जड़सूत्र, शैव और वैष्णव मतों ने अपनाये। कुछ समय बाद बौद्ध धर्म अपनी पहचान खो चुका था। रही सही कसर शंकराचार्य ने पूरी कर दी। सनातन धर्म का पुनर्जागरण अब पूर्ण हो चुका था और जल्द ही भगवान बुद्ध विष्णु के एक अवतार मात्र रहा गए। जैसे असंख्य छोटे छोटे नदी नाले और स्रोत गंगा में मिल अपनी व्यक्तिक पहचान खो देते हैं वही हाल बौद्ध धर्म का हुआ। वैसे मजेदार बात यह है कि श्रीलंका में विष्णु बौद्ध मंदिरों के चार संरक्षकों में से एक माने जाते हैं!
राजकुमारी हेममाली अपने जूड़े में बुद्ध का दन्त छुपाकर ले जाते हुए |
श्रीलंका में भी बौद्ध सिंहल राजाओं को दक्षिण भारतीय शैव हिन्दू साम्राज्यों के हमले का सामना करना पड़ा था। इनमें सबसे ज्यादा, थंजावुर के भव्य और विशाल मंदिरों के निर्माता, राजाराज चोल १ और उसके पुत्र राजेंद्र चोल १ का हाथ था जिन्होंने सिंहलों पर हमला कर उनकी राजधानी अनुराधापुर को ध्वस्त कर दिया और पोलोनारुवा में नयी राजधानी स्थापित की। आज ये दोनों ही यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर साईट घोषित हैं।
चोल अपने साथ शैव धर्म भी श्रीलंका में लाये और कुछ समय के लिए बौद्ध धर्मी राजाओं ने दक्षिण श्रीलंका के घने जंगलों में पनाह ली। श्रीलंका का राजनैतिक इतिहास काफी उथल पुथल भरा रहा है। श्रीलंका की राजगद्दी पर चोल, पांड्य, सिंहल, कलिंग, ब्रितानी, डच, पुर्तगाली इत्यादि ने अधिकार जताया है। श्रीलंका की राजधानी एक शहर से दूसरे और दूसरे से तीसरे शहर में विस्थापित हुई। मगर बौद्ध धर्म ने पकड़ बनायी रखी। विक्रमबाहू १ और पराक्रमबाहू ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और बर्मा के बौद्ध साम्राज्य की मदद से बौद्ध मठों की स्थापना की।
पेराहारा के दर्शन के लिए बैठे लोग |
कैंडी के पवित्र दन्त मंदिर के बाहर एकत्रित भीड़ |
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध के दंत को हासिल करने वाला ही श्रीलंका पर शासन का अधिकारी होगा। भगवान बुद्ध का दन्त उनके अंतिम संस्कार के अवशेषों में से बचा कर रख लिया गया था। वैसे यह एक लम्बी कहानी है और फिर कभी सुनाई जाएगी। आज यह दन्त ड़ाम्बुला के पवित्र दन्त मंदिर में रखा गया है और झाँकी के दौरान शहर में घुमाया जाता है। श्रीलंका में एसारा पेराहारा (दन्त का त्योहार) आज भी जुलाई /अगस्त के माह में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन काफी भारी संख्या में लोग उस दन्त के दर्शन करने के लिए यहाँ आते हैं। काफी रंग बिरंगा अवसर है यह, जिसमे हाथियों को सजाकर शहर में घुमाया जाता है, कुछ -कुछ केरल के त्रिचूर पूरम की तरह। संयोग से मैं उस दिन कैंडी में ही था। मगर भीड़, आग उगल कर नाच करने वाले और रंग बिरंगे हाथी मैंने भारत में बहुत देखे हैं इसलिए मैं यह सब छोड़ कोलम्बो चला गया।
वैसे मेरा मूल विचार श्रीलंका में बौद्ध धर्मं के बदलते हुए रूप के बारे में लिखने का था मगर लगता है कि मैं थोडा इधर उधर भटक गया हूँ। वैसे यह भी जरुरी था। अब वह अगली कड़ी का विषय होगा।
चलते चलते
पवित्र दन्त मंदिर के निकट एक पिज़्ज़ा हट का रेस्तरां है जो पेराहारा की वजह से बंद था। उस दिन रेस्तरां को एक दर्शक दीर्घा में परिवर्तित कर दिया गया था जहाँ आप सीट खरीद कर जुलूस के मजे ले सकते हैं। वहां एक जनाब मुझे एक टिकट ४००० श्रीलंका रुपयों में बेचने की कोशिश कर रहे थे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं कोलम्बो जा रहा हूँ तो वे २००० रुपयों में तैयार हो गए। मैं काफी प्रयासों के बाद ही उनको इस बात का विश्वास दिला पाया कि मैं सही में शहर छोड़ कर जा रहा था। और फिर अपने चेहरे पर १००० वाट की मुस्कान लाकर वह बोला - "आप जरुर पंजाब से होंगे " !
पिज़्ज़ा हट में दर्शक दीर्घा |
पिछली कड़ियाँ :
श्रीलंका - एक भूमिका
सफाई पसंद श्रीलंका
श्रीलंका के धर्म सम्प्रदाय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
तो कैसा लगी आपको यह रचना? आईये और कहिये...