काकेश जी का भारतीय रेलवे के बारे में ब्लॉग पढ़ा तो मुझे भी अपने पुराने दिन याद हो आए. रही रेलवेके खाने की बात. तो याद आया की कभी मैं घर जाते समय मथुरा रेलवे स्टेशन पर रेलवे के जलपान गृहमें खाना खाया करता था. जैसी भोजन की थाली की तस्वीर काकेश जी ने चिपकायी है कुछ कुछ वैसीही . खाना तो बस ठीक-ठाक ही था मगर मथुरा के रेलवे स्टेशन पे वही सबसे अच्छा विकल्प था. प्लेटफोर्म पे लेटे हुए और गुदडी में सिमटे हुए लोग , पुलिसिया रॉब दिखाते हुए जेब में हाथ डालकरघूमता हुआ हवालदार, वेटिंग रूम में बैठकर अपनी ट्रेन का इन्तेजार करते हुए “रिज़र्वेशन” वाले लोग , प्लेटफोर्म पर मंडराते हुए - परेशान नजरों से इधर उधर ताकने वाले “जनरल” लोग, और अगर गलतीसे एसी वाले “बड़े साहब” आ गए तो फ़िर खैर ही नहीं!
आज हवाई जहाज से यात्रा करता हूँ मगर फ़िर भी वह मजा नहीं. हर आदमी बाये मुंह करके बैठा रहताहै. बस ताकते रहिये अधर में! गलती से भी किसी को देख लिया तो यूं हीन नजरों से देखता है मानो कोईअपराध हो गया हो. इतना ही अभिमान है तो इकोनोमी क्लास में क्यों यात्रा करते हैं , जाइये न बिजनेस क्लास में?
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