"अजीब बदतमीजी है ! मतलब गुंडागर्दी है क्या? कुछ भी करेंगे?", एकदम से दो -तीन सवाल उन्होंने दाग दिए। मेरे द्वारा दिए गए पानी के एक ग्लास को गटक कर थोड़ा नरम पड़े। "यह लोग भी न, गणेश चतुर्थी के बहाने बस कुछ भी करना शुरू कर देते हैं!"
"अरे क्या हुआ कुछ खुल कर बताइए न ?" मैंने सहानुभूति के भाव चेहरे पर लाकर पूछा।
"अरे यार क्या बताऊँ? सुबह ६ बजे से फुल वोल्यूम में गाने लगा देते हैं। वह भी अध्यात्म रस से भरपूर भक्ति गीत नही - बल्कि हिमेश रेशमिया छाप, कव्वाली टाइप गाने। गाने के बोल कम और छः फुटिया स्पीकर से निकली हुई बीट्स ज्यादा सुनाई देती हैं। सुबह झक मारकर उठा और दूध लेने के लिए नीचे गया तो देखा कि सामने सड़क खुदी हुई है! एक ही गली में बमुश्किल २० मीटर की दूरी पर चार पंडाल छापे हुए हैं। अन्दर "गणपति बप्पा" शान से बैठे हुए 'मोनालिसा स्माइल' दे रहे हैं। मालुम होता था मानो हमारी हालत पर ही तिरस्कार भरी दृष्टि हो!"
"अरे यह तो हर साल का खेल है - कभी दुर्गा पूजा, कभी गणेश चतुर्थी तो कभी और कुछ। ", कहकर हमने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए।
"अजी अब क्या बताएं आपको, गली के सारे निकम्मे लौंडों का किया धरा है ये सब। दो हफ्ते पहले ही कुछ मुस्टंडे आए थे चंदा मांगने।" उन्होंने फुंफकार मार कर कहा। "और हफ्ते भर बाद देखियेगा यही "गणपति बप्पा" कहीं गंदे पानी में फांके मार रहे होंगे!", उनकी बातों में कटाक्ष का भारी वजन था।
"जी हाँ मुझे भी कल कुछ अदन्नी से बच्चे एक रसीद पुस्तिका लिए हुए मिल गए थे गली के मोड़ पे। गणपति के लिए चंदा मांग रहे थे - बड़ी मुश्किल से टरकाया मैंने!", हम भी दांव पर दांव मार रहे थे।
"अब क्या कहें बमुश्किल पिछले महीने ही नगरपालिका वालों ने सड़क की मरम्मत करवाई थी। और अभी तो बरसात भी पूरी तरह नही ढली है। झुमरी तल्लैया का अगला अवतरण यहीं होने वाला है।", वो बेधडक चालू थे। "अभी शाम को थककर घर आया हूँ तो वही रात्री-गान का 'डेली डोज'। मतलब आज की रात को जगराता?"
"Religion is the opium of masses" और "आजकल का भौतिकवादी समाज" ऐसे कुछ मार्क्सवादी विचार हमने भी ठेल दिए। अब वार्तालाप में मजा सा आने लगा था।
मगर वह तो पूरी तरह से बिदके हुए थे। "अजी साहब, कोई इन भले लोगों को बताये - परमात्मा ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है ; जिसको 'राखी सावंत नैट' मनानी हो वो डांस बार में जाए!"
हमने ठहाके के साथ मिठाई की तश्तरी उनकी तरफ़ सरकाई। दो -तीन कदाचित स्थूल लड्डुओं और निर्बल बर्फियों को निपटाने के बाद वो कुछ ठंडे पड़े। "अच्छा आपका बिस्तर यही लगवा देते हैं, आज रात तो आराम कर लीजिये!", यह प्रस्ताव उन्हें संयत कर गया।
"अजी आज की रात तो कट जायेगी मगर अभी तो विसर्जन में दस दिन बाकी हैं, तब तक तो हमारा गोभी चूरमा बन जायेगा।" ऐसे कहते हुए उन्होंने चद्दर मुंह पर ले ली।
Image Credits: Wikipedia
badhai ho ji.
जवाब देंहटाएंALOK SINGH "SAHIL"
badhai ho ji.
जवाब देंहटाएंALOK SINGH "SAHIL"
५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
जवाब देंहटाएं५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
जवाब देंहटाएंसही व्यथा बयां की है।
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