ग्लोबल वार्मिंग वाले काफ़ी समय से चिल्ल पो मचा रहे हैं - इस बार शान्ति का नोबेल पुरस्कार मिलने से उनके प्रयासों को बढावा भी मिला है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अल गोर २००० का चुनाव हारने का गम ग्लोबल वार्मिंग के जरिये भुला रहे हैं। अमरीका और यूरोप के देशों में तो यह काफ़ी संवेदनशील मामला है। जहाँ भारत, रूस, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने क्योटो प्रोटोकॉल को प्रमाणित किया है वहीं सबसे बड़े दोषी अमरीका, चीन और जापान की इस मामले में बहुत भद्द पिटी है।
वैज्ञानिक कहते हैं की ग्लोबल वार्मिंग के वजह से कैटरिना जैसे तूफानों की संख्या में कमी आएगी (ध्रुवों और भूमध्य रेखा के तापमान का अन्तर कम होने के कारण), तो कुछ कहते हैं बढ़ जायेगी। कुल मिलकर मामला थोड़ा पेचीदा है।
इंसान टेक्नोलॉजी रुपी भस्मासुरी वरदान लेकर विचलित है, इधर उधर भटक रहा है किसी को भस्म करने के लिए - कभी शेरों को, कभी जंगलो को, कभी ग्लेशियर-समुद्रों को तो कभी ख़ुद की जड़ें काटने पे उतारू है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत और बंगलादेश के मच्छर और पिस्सू उड़कर यूरोप के देशों में पहुँच जायेंगे - इसी बहाने मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों पर से तीसरी दुनिया का एकाधिकार भी निकल जाएगा। साथ ही यूरोप के देशों की बर्फ पिघलकर बंगलादेश के तट को डूबा देगी - मानो बदला लेने के लिए! पोलर भालू ध्रुवों से जमीन की तरफ़ बढ़ रहे हैं तो शार्क और केकडे अंटार्टिका पर हमले को तयार हैं।
फ्रांस में गर्मी के कारण अंगूर की फसल दस दिन पहले पक रही है। ऐसे अंगूरों में चीनी की मात्रा और P. H. लेवल दोनों बढ़ने के कारण फ्रांस की मशहूर वाईन का स्वाद भी बदल सकता है। यह भी हो सकता है की फ्रांस की वाईन अब ब्रिटेन में उगाई जाए !
भैया, अपना प्रिय तो नीम्बू पानी है। उसका स्वाद बरकरार रहेगा न?
जवाब देंहटाएंऔर आपका लिखा है बहुत बढ़िया। चीयर्स!
hi dude,
जवाब देंहटाएंI see that u visited my blog. thanks a lot for that.
as far as my composition is concerned, any of the posts if they arnt mine,i have mentioned ther,rest all are mine.
so i hope u might get some time to look for others as well.
सौरभ जी
जवाब देंहटाएंआपके व्यंग्य धारदार हैं। पढ़ने में मजा आ गया।
दीपक भारतदीप