शनिवार, जनवरी 12, 2008

एक सुबह टीवी के साथ ...

कुछ दिन पहले की ही बात है, ठीक तारीख तो याद नहीं मगर वह बेमतलब है। कुछ औसत सा ही दिन था। सूरज आज भी पश्चिम से उगा था। मगर कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। अरे हाँ, इतनी शांति जो थी ! सुबह - सुबह नरकपालिका वाले आकर गली के सारे कुत्तों को गाड़ी में उठा कर ले गए थे। तभी मकान मालिक ने दरवाज़े पे दस्तक देकर किराये की फरमाईश कर दी। उसको निपटाते ही केबल, अखबार और इंटरनेट का बिल लेने वाले भी आ धमके। काम वाली बाई ने भी मौका देखते ही बहती गंगा में हाथ धो लिए। अपने आप को इतने सारे लोगों के प्रति कर्ज़दार पाकर मैं अपराध भाव से ग्रस्त हो चुका था।

वह ऐसा ही एक दिन था इन सब की मार से त्रस्त मैं आंखें फाड़ के टीवी के सामने बैठा था। पहले कतार से न्यूज़ चैनलों ने अपने दर्शन दिए। हर चैनल हमें वक़्त से भी तेज चलने की सलाह दे रह था। अब यह बताना फिजूल है की यह निर्वाण सिर्फ उनके चैनल के साथ ही संभव था।


पिछले पखवाडे में काफी कुछ घट चुका था। मोदित्व की गुजरात विजय, बेनजीर की सनसनीखेज हत्या, गोवा में सेज , राखी सावंत का नाच, सिडनी का मंकी - क्रिकेट वगैरह - वगैरह। कहने का सार यह की आज न्यूज़ चैनलों के पास ख़बरों की कमी न थी।

आज स्टार न्यूज़ , आजतक और इंडिया टीवी के बीच में बेहूदा खबरों को ब्रेकिंग न्यूज़ बनने की होड़ न थी। यहाँ तक कि देर रात को टीवी सेट पर आकर अंगुली लहराते हुए एक दढियल सज्जन भी आज गुम थे !


किसी तरह इन सुब को निबटा के हम आगे बढे तो कुछ "घरेलु" चैनलों ने अपना रोना मचाया हुआ था। गृह कलेश, षड्यंत्र, छल - कपट, पर स्त्रीगमन, घरेलु ईर्ष्या जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस चल रही थी। भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने का दंभ भरते हुए कुछ स्त्रियाँ नौ गज की साड़ी ,भारी शृंगार, ऊँची संडल, छोटे ब्लाउज़ और ग्लिसरीन उत्पत्त अश्रु नेत्रों में ग्रहण किये हुए एक जज्बाती बहस में मशगूल थी। करोडों की बात तो यूं चल रही थी मानों सभी नवाब की जनी रिक्त हुंडी हाथ में लेकर पैदा हुई हों।


खैर आगे बढ़ते ही बाबा रामदेव ने न जाने किस इश्वर उत्पत्त आसन का प्रदर्शन करके अपने पेट की सारी अंतडियो के अप्रत्यक्ष दर्शन करा दिए। देखकर मानों क्यों दिल में मचली सी होने लगी। कुछ अन्य महानुभाव भी इश्वर भक्ति में लिप्त हों - इस संदर्भ में हमें कुछ उपदेश देने के लिए अपना गला खंखार रहे थे कि हम सटक लिए।

आगे के कुछ चैनल हमारे लिए बधिरों की श्रेणी से हैं। इन राहू केतु चैनलों की संख्या २०-२५ के बीच में है जो कि असाधारण रुप से बढ़ सकती है यदि आप दक्षिणी भारत की तरफ प्रस्थान करें। इन चैनलों पर भरमार है पारदर्शी साडी पहने हुई मांसल अभिनेत्रियों और हजारी के फूलों की क्यारी की तरह होंठों से सटी हुई मूछें धारण किये हुए तोंदले अभिनेताओं की। ऐसे महामानव जिनके लिए चित्रकथाओं के नायक की भांति कुछ भी असंभव नही ! चाहे एक हाथ से ट्रेन को रोकना हो, या फिर अंगुली से दीवार में कील ठोकना या फिर बंदूक से निकली हुई गोली को ब्लेड कि सहायता से दो भागों में विभाजित करना।

इन सब चैनलों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मान हमने एक लंबी छलांग लगाई, धरती पर कदम रखते ही पाया कि दो अति हृष्ट पृष्ट पुरुष एक दुसरे को उठा कर पटक रहे हैं। तभी काले लंगोट वाले ने एक कुर्सी उठा के दुसरे के सिर पे दे मारी । यह देख रिंग के बाहर खड़ी उसकी महिला सह्भागिनी ने नकटी शूर्पनखा की भाँती चीत्कार करते हुए रिंग के अन्दर छलांग लगाई।

यह सब खून खराबा पीछे छोड़ हम डिस्कवरी के गुच्छे पर आ लटके। और बाक़ी पूरा दिन हमने ग्लोबल वार्मिंग से मोजाम्बिक के पर्यावरण पर हो रहे दुष्प्रभाव का अवलोकन करते हुए बिताया।

4 टिप्‍पणियां:

  1. सूरज आज भी पश्चिम से उगा था। मगर कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। ---
    isiliye ajeeb sa mehsoos ho raha tha
    -rp

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  2. manna parega bhai, is sabke bavjood aap me apni ye vyatha sunane ki shakti sesh thi. Aasha hai man thora halka hua hoga

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  3. रोचक - टीवी के बारे में मुझे ब्लॉग से पता चलता है!

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